Friday 13 January 2012

दो कवितायेँ

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मेरी माँ भी 
एक अच्छी प्रेमिका बन सकती थी 
लेकिन उसकी शादी बारह साल की 
उम्र में
एक सैनिक से कर दी गयी
सैनिक ने अपने जीवन के
पैंतीस साल अंधी देश भक्ति के नाम पर
सेना को दे दिए
और माँ विविध भारती पर सुनती रही
सैनिकों का कार्यक्रम
जयमाला !
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मेरे मित्रो 
ये कितना अजीब किस्म का हो गया हूँ मैं 
की तहजीब के ताबीज में बंद 
भालू के बाल के जैसा 
कुत्ते की दुम  की तरह 
चाँदी  में मड़ा हुआ ,
ये कैसी आंच है 
जब मैं इसमें चढ़ाया गया तो पका हुआ था 
अब ये आंच मूझे कच्चा बनाने में तुली हैं 
चौराहों पर 
माईक में चिल्ला रहे है लोग 
आवारा कुत्ते 
आराम से सेंक रहे है 
कुहरे से सीझ कर
 आती धूप  
या धूप जैसी कोई चीज 
होल्डिंग उखड़ कर 
पागलों के बिस्तर हो गये हैं 
फ़िलहाल देशी युवक विदेशी सराब पीकर 
पानी से डर रहे हैं 
सरकार कह रही है उन्हें रैबीज हो गया है 
और वो कहते हैं हमें 
पागल कुत्तों ने नही 
पागल समय ने काट लिया है 
जबकि कानून का झबरीला कुत्ता 
नेताओं के तलवे चाट रहा है 
प्रधानाचार्य अब तक बच्चों को डांठ रहा है !
.............अनिल कार्की  ..

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