Wednesday 9 November 2011

ज़िन्दगी की जीत में यक़ीन कर


तू ज़िन्दा है तू ज़िन्दगी की जीत में यक़ीन कर
अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर।
सुबह-ओ- शाम के रंगे हुए गगन को चूम कर
तु सुन ज़मीन गा रही है कब से झूम-झूम कर
तु आ मेरा श्रृंगार कर तु आ मुझे हसीन कर
                      अगर कहीं है....

हज़ार भेष धर के आई मौत तेरे द्वार पर
मगर तुझे न छल सकी चली गयी वो हार कर
नई सुबह के संग सदा मिली तुझे नई उमर
                      अगर कहीं है.....
ये ग़म के और चार दिन सितम के और चार दिन
ये दिन भी जायेंगे गुज़र गुज़र गये हज़ार दिन
कभी तो होगी इस चमन पे भी बहार की नजर
                      अगर कहीं है……….


                                          इप्टा

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